मौलिक अधिकार क्या है? मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण
हेल्लो दोस्तों आज के इस आर्टिकल हम बात करेंगे मौलिक अधिकार क्या है? क्या आप भी जनना चाहते हैं कि मौलिक अधिकार किसे कहते हैं मौलिक अधिकार कितने है तो आप बिल्कुल सही जगह आये हैं क्योंकि आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बताएँगे मौलिक अधिकार क्या है। मौलिक अधिकार राज्य के विरुद्ध व्यक्ति के अधिकार हैं। ये रज्य के लिए नकरात्मक आदेश है अथार्त राज्य के कुछ कार्य प्रतिबन्ध लगते हैं। मौलिक अधिकार के अभाव में कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकाश नहीं कर सकता। मौलिक अधिकारो को नागरिक अधिकार के रूप में विश्व का सर्व प्रथम ब्रिटेन में दिया गया। इसे सन 2015 में वहा के सम्राट सार जन द्वितीय ने दिया जिसे दहंड बुत्जं कहा जाता है।
सन 1669 में सम्राट ने कुछ और अधिकार प्रदान किया जिसे वहा का विल ऑफ़ रेट्स कहा गया। अमेरिका ने भी अपने मौलिक अधिकार को विल ऑफ रेट्स कहा चूँकि मौलिक अधिकार लिखित सबिधन के अंग होते हैं। और ब्रिटेन में अलिखित सबिधन होने के कारण मौलिक अधिकार उस रूप में नहीं है जैसे भारत और अमेरिका में माना जाता है। मौलिक अधिकार क्या है मौलिक अधिकार किसे कहते हैं ये सारी जानकारी जानने के लिए हमारे द्वारा लिखे गए इस आर्टिकल को अंत तक जरुर पढ़ें।
मौलिक अधिकार क्या है?
मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के जीवन के लिए मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं और जिनमें राज्य द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। ये ऐसे अधिकार हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिये अवयश्यक है और जिनके बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नहीं कर सकता। इन्हें देश के संविधान में स्थान दिया गया है तथा संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के अतिरिक्त उनमें किसी प्रकार का संशोधन नहीं किया जा सकता है इसलिए इन्हें मौलिक अधिकार कहा जाता है। ये अधिकार व्यक्ति प्रत्येक पक्ष के विकास हेतु मूल अवयश्यक हैं। इनके अभाव में व्यक्ति का व्यक्तित्व विकास अवरुद्ध हो जायेगा। इन अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्राप्त होते है।
मौलिक अधिकार कितने है?
मौलिक अधिकारों की संख्या कुल संख्या हैं जो आपको नीचे विस्तार से दिखाई गई हैं और इनके बारे में विस्तार से समझाया है।
- शोषण के विरुद्ध अधिकार
- संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार
- स्वतंत्रता का अधिकार
- समता का अधिकार (समानता का अधिकार)
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार
- धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
शोषण के विरुद्ध अधिकार
मानव का दुर्व्यापार मजदूर वेश्यावृत्ति और बैगर तथा इसी प्रकार अन्य जबरदस्ती लिया जाने वाला श्रम प्रतिसिद्ध किया जाता है। और इस उपबन्ध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो विधि के अनुशार दंडनीय होगा किन्तु राज्य सार्वजनिक कार्यों के लिए व्यक्तियों से अनिवार्य सेवा ले सकती है और राज्य ऐसी सेवा आरोपित करते समय व्यक्तियों के बीच धर्म मूल वंश जाति वर्ग के आधार पर भेद नहीं करेगी।
- कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिशेध होगा।
- 14वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखानों या किसी भी काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा।
संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार
भारत विभिन्नताओ में एकता वाला विशल देश है। इसके निवासियों का धर्म संस्कति रीती रिवाज भाषा एवं लिपियाँ आदि भिन्न-भिन्न है तथा ये लोग अपनी भाषा और संस्कृति पर गर्व करते है। इसलिए आवश्यक हो जाता है। कि संस्कृति भाषा एंव लिपि की विभिन्नता को बनाये रखे जा सके। जहा तक अल्पसंख्यक वर्गों का सम्बन्ध है उनकी भाषा का परिरक्षण और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
भारत में राज्य क्षेत्र या उसके किसी भी भाग के निवाशी नागरिको के प्रत्येक ऐसे बर्ग को जिसकी अपनी विशेष भाषा लिपि या संस्कृति है उसे बनाए रखने का अधिकार होगा। राज्य द्वारा पोषित या राज्यनिधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षण संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म मूलवंश जाति भाषा या इनमें से किसी आधार पर वंचित नहीं किया जा सकता है।
स्वतंत्रता का अधिकार
स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय सबिधन के अनुशार अनुछेद 19 से अनुछेद 22 तहत दिए गए मौलिक अधिकारों को संदर्भित करता है। इन अधिकारों का उद्देश नए भारत में प्रस्तवना प्रिएंबल के द्वारा रखे गए स्वतंत्रता के आदेशो को बढ़ावा देना है ताकि व्यक्तियों के बिच सामन्यता को दूर किया जा सके और सभी व्यक्तियों को एक सम्मान जनक जीवन का अधिकार दिया जा सके।
समता का अधिकार (समानता का अधिकार)
समता का अधिकार कानून के सक्षम सभी के साथ सामान व्यवहार का प्रावधान करता है। विभिन्न आधारों पर भेदभाव को रोकता है। सार्वजनिक रोजगार के मामलो में सभी को सम्मान मिलता है। और अस्पृश्यता और उपाधियों को समाप्त करता है सबिधन के सभी नागरिको के लिए सामन्यता की बात की गई है उदहारण के लिए व्यक्ति को धर्म जाति के आधार पर कोई यह नहीं कह सकता की आप किसी जाति विशेष के है। इसलिए आपको नौकरी नहीं मिल सकती है सबिधन में छुआ छुत को क़ानूनी रूप से अपराध घोषित किया गया है। किसी भी नागरिक को सार्वजानिक संस्थाओ जैसे कालेज स्कूल मदिंर और अस्पताल स्थल में प्रवेश एवं स्तेमाल करने से नहीं रोक सकता हैं।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार
संवैधानिक उपचारों का अधिकार स्वय में ही कोई अधिकार न होकर अन्य मौलिक अधिकारों का रक्षोपाय है। इसके अंतगर्त व्यक्ति मौलिक अधिकारो के अहन कि अवस्था में न्यायालय की शरण ले सकता है। इसलिए डॉ ने अनुछेद अनुच्छेद 32 को संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद बताया एक अनुच्छेद जिसके बिना संविधान अर्थहीन है यह संविधान की आत्मा और हृदय हैं।
धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार
भारत एक बहुत बड़ा धर्म वाला देश है जहा हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई एंव अनेक लोग अन्य समुदय के साथ रहते हैं। सबिधन भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य गोषित करता है। एक धर्मनिरपेक्ष का अर्थ है कि भारतीय राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है किन्तु यह समस्त नागरिको को किसी भी धर्म में विश्वास रखने तथा अपने पसंद के अनुशार उपासना करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान करता है। यह स्वतंत्रता सबिधन द्वारा धर्म के स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 25-28) के अंतगर्त प्रदान की गई है।
निष्कर्ष
आज के इस आर्टिकल में हमने आपको मौलिक अधिकार क्या है मौलिक अधिकार किसे कहते हैं (What is Fundamental Rights in Hindi) में पूरी जानकारी दी दोस्तों आशा करता हूँ आप आपको इस आर्टिकल को पढ़कर मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। अगर आपको हमारा यह आर्टिकल पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों में ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और एक बार हमें कमेंट करके जरुर बताएं आपको हमारा यह आर्टिकल कैसा लगा धन्यवाद।